चतुर्थ संस्करण (जुलाई 2020 - सितम्बर 2020) |
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यज्ञ के फलस्वरूप पर्जन्य बरसने का प्रतिफल बताया गया है | पर्जन्य अंतरिक्ष में घुमड़ने वाली प्राण - परतों को कहते है, जो जल ही नहीं, पवन, अन्न एवं वनस्पतियों में सम्मलित होकर प्राणियों की क्षमता एवं पदार्थों की उपयोगिता की अभिवृद्धि करता है| यज्ञ से इसी पर्जन्य की वर्षा होने और उससे सुखद परिस्थितियाँ विनिर्मित होने की बात कही गई है | विश्व वैभव के संवर्धन में यज्ञ - प्रक्रिया का कितना बड़ा योगदान हो सकता है, इस तथ्य को अतीत के अध्यात्म वैज्ञानिकों ने भली प्रकार समझा था और इस उपचार से विश्व - कल्याण का व्यापक वातावरण बनाया था | आज इस महाविज्ञान की खोयी हुई कड़ियों को फिर से ढूँढ निकालने की आवश्यकता है | पेज नंबर - 2.2 "यज्ञ एक समग्र उपचार प्रक्रिया" (वाङ्मय संख्या - 26) | | |
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संपादकीय आज हम जिस हवा में साँस ले रहे हैं, वह बैक्टीरिया, फंगस तथा पैथोजन के रूप में कई रोगाणु तथा नाइट्रोजन डाइऑक्साइड (NO2), कार्बन मोनोआक्साइड (CO), निलंबित धूल कण (SPM) की तरह हानिकारक गैसों से भारी मात्रा में युक्त है | इनमें से ज्यादातर सरकार द्वारा निर्धारित मानकों से ऊपर हैं और मानव स्वास्थ्य के लिए बेहद हानिकारक हैं। सभी जीवधारी मलमूत्र, श्वास के द्वारा गंदगी तो फैलाते ही हैं और औद्योगीकरण के कारण गंदगी की तो मानो पराकाष्ठा ही हो गई है। मनुष्य अपने सुख-सुविधा के साधन बढ़ाता जा रहा है और उसी अनुपात में पर्यावरण का भी सत्यानाश कर रहा है। पृथ्वी पर जीवन बना रहे, इसके लिए शुद्ध वायु एवं जल मुख्य रूप से आवश्यक है। आज चारों ओर व्याप्त गंदगी के कारण न तो शुद्ध वायु मिलती है और न ही स्वच्छ जल उपलब्ध हो पा रहा है। जैसे-जैसे मनुष्य का मन मलिन हो रहा है, वैसे ही इसके चारों ओर व्याप्त पर्यावरण भी दूषित हो रहा है। इसके लिये सम्पूर्ण विश्व में वैज्ञानिक अथक प्रयास कर रहे है परंतु शोध एवम उपाय अत्यंत खर्चीले होते हुए भी इसका अभी तक सम्पूर्ण निदान नहीं निकाल पाए हैं। यज्ञ द्वारा पर्यावरण को शुद्ध करना सबसे सस्ता और सुगम उपाय है। देव संस्कृति विश्व विद्यालय के अंतर्गत की जा रही शोधों द्वारा देखा जा रहा है कि जो तथ्य वैदिक काल में प्रतिपादित ग्रंथों में बताये गये हैं वो कितने सत्य हैं।यज्ञकुंड से उठा हुआ धुआं हवा के साथ चारों ओर फैल जाता है और उसके साथ औषधि युक्त वाष्प भी, जिसमें अनेक उपयोगी रासायनिक तत्व भी होते हैं। यह धुँआ जहाँ वातावरण को हानिकारक कीटाणुओं से मुक्त करता है, वहीं वायु में व्याप्त विषाक्त गैसों को भी कम करता है, साथ ही पेड़ पौधों पर भी सकारात्मक प्रभाव डालता हैं। यदि यज्ञ को पूर्ण सावधानी के साथ किया जाये तो यज्ञ की गैस में प्रदूषण दोष न्यूनतम रहता है। इसमें स्थित अनेक रासायनिक व् सुगंधित पदार्थ कई प्रकार के प्रदूषण को दूर करके पर्यावरण को शुद्ध बना देते हैं। वायु की शुद्धि के अतिरिक्त यज्ञ से उत्सर्जित गैस से जल व भस्म से कृषि के लिये उपयोगी मिट्टी, प्रदूषण मुक्त व पोषण्युक्त बन जाती है। यह पोषणयुक्त गैस, ऊपर उठ कर बादलों में जा मिलती है और फिर वर्षा के रूप में पृथ्वी पर बरसती है। उसके द्वारा जल स्रोत निर्मल होते है, वनस्पतियां परिपुष्ट होती हैं, मिट्टी की उर्वरा शक्ति बढ़ जाती है। यज्ञ के धुए के गंध को यज्ञ प्रदेश की पृथ्वी सोख लेती है। इससे पृथ्वी की कृषि उपज कई गुना बढ़ जाती है और पौष्टिक भी हो जाती है। इस दिशा में अखिल विश्व गायत्री परिवार द्वारा शोध के अनेक प्रयास प्रारम्भ हो गये हैं और इनके परिणामों की चर्चा हम इस समाचार पत्र के माध्यम से करते रहेंगे। |
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| | यज्ञ की रासायनिक शोध के परिणाम श्रीमती मीनाक्षी रघुवंशी ने अपनी स्नातकोत्तर शोधग्रंथ “Some Investigations into Chemical and Paharmaceutical Aspects of Yagyopathy: Studies in Pulmonary Tuberculosis.” में इन्हेलेशन थेरेपी में प्रयोग होने वाले फाईटोकेमिकल्स के साथ आयुर्वेदिक वनौषधियों का क्षय रोग के कुछ केसों में औषधीय परीक्षणों के साथ वर्णन किया है। इस रासायनिक अध्ययन से प्राप्त कुछ मुख्य तथ्य इस प्रकार है: | | |
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| | यज्ञ का वायु की हानिकारक गैसों पर प्रभाव यज्ञ, जिसमें अग्नि में हवन सामग्री डाल कर होमी जाती है, और धुआँ उत्सर्जित होता है, क्या उसके द्वारा पी.एम. का स्तर घटाया जा सकता है? यह एक ऐसा प्रश्न है जो सभी के मन में रहता है। तो चलिये आज हम लोग बात करते है एक ऐसे प्रदूषण की जो की भारत सरकार के लिये सिरदर्द बन चुका है और आज के Air Quality Index (AQI) का मुख्य कारण स्रोत भी है। यह है पर्टिकुलेट मैटर अर्थात पी.एम.। ये अधिकतर ऐसे टॉक्सिक पदार्थ के धूल कण होते हैं जो साँस के माध्यम से फेफड़ों के अंदर जाते है और अंदर ही रुक जाते है तथा कई बीमारियों का कारण बनते है। आइये पहले हम जान ले, की इनके स्तर के बढ़ने से हमें क्या - क्या रोग हो सकते हैं । | | |
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| | यज्ञ द्वारा कोरोना से मिली मुक्ति श्रीमती पिंकी जी (पटना) मैं और मेरे पति दोनों जाॅब करते हैं। 1 जुलाई को मेरे पति के बाॅस कोरोना से संक्रमित हो गए। 4-5 दिन के बाद जब उनके पड़ोसी का भी टेस्ट पाॅजिटिव आया तब हम दोनों ने भी अपना टेस्ट करवाया क्योंकि पड़ोस का बच्चा हमारे घर बराबर आया करता था। हमारी रिपोर्ट भी पॉजिटिव आई । मेरे पति और मुझे शुरू के 2 दिन बुखार था परंतु उसके बाद से कोई भी रोग जनित परेशानी खांसी या छाती में जकड़न आदि महसूस नहीं हुई। घर और ऑफ़िस के सभी कार्य यथावत चलते रहे। तीसरे सप्ताह में टेस्ट कराने पर इन दोनों की कोरोना रिपोर्ट नेगेटिव आ गयी । मैं और मेरे पति दोनों ही अब सोचते है कि यह केवल यज्ञ का ही प्रभाव है क्योंकि हम दोनों दिसंबर 2019 से ही नित्य यज्ञ कर रहे है । यज्ञ की सामग्री में हम अजवाइन, तेजपत्र तथा दालचीनी का प्रयोग भी करते हैं । घर में नित्य यज्ञ होते रहने से हम दोनों की सोच सदैव सकारात्मक बनी रही और कोरोना का कोई भी दुष्प्रभाव नहीं पड़ सका। | | |
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| | यज्ञ से हुआ कैंसर के लक्षणों मे सुधार श्रीमती लिपिका मोहंती, (भुवनेश्वर, उड़ीसा) मेरी बेटी जो आज से 5 वर्ष पूर्व कैंसर से पीड़ित थी। उस समय उसकी उम्र 12 वर्ष थी। भुवनेश्वर अस्पताल के डॉक्टरों ने जाँच करने पर कैंसर की अंतिम अवस्था में बताया। कैंसर पूरी तरह से शरीर में फैल चुका था। डॉक्टरों के सुझाव पर हम इलाज के लिए उसे टाटा मेमोरियल अस्पताल मुंबई ले गए। वहाँ डॉक्टरों ने रोग की गंभीर स्थिति को देखते हुए उसके बचने की बहुत कम उम्मीद बताते हुए दवा और किमोथेरपी शुरू की। साथ ही उसके पेट में ट्यूमर भी बढ़ रहा था, जो असहनीय पीड़ा दे रहा था। जिसके परिणामस्वरूप उसे हार्ट अटैक भी हुआ। फिर भी हिम्मत न हारते हुए हमने उसकी दोबारा किमोथेरपी शुरू करवाई। उसके बाद उसकी स्थिति में काफी हद तक सुधार देखने को मिला। उस मुश्किल दौर में घर वापस आने पर, उसके कुछ दिनों पश्चात ही उसके व्यवहार में भी परिवर्तन दिखने लगा। वह बात-बात पर क्राेध करती व उसका चिड़चिड़ापन बढ़ने लगा था। टाटा मेमोरियल अस्पताल के डॉक्टरों के सुझाव पर मनोवैज्ञानिक इलाज आरंभ किया। उसी बीच मुझे यज्ञोपैथी समूह से जुड़ने पर यज्ञोपैथी के बारे में जानकारी प्राप्त हुई। मुझे वैदिक उपचार विधि में विश्वास होने के कारण मैंने प्रतिदिन कैंसर हेतु विशेष हवन सामग्री, गोमय और शाकल्य समिधा के साथ गायत्री मंत्र और महामृत्युंजय मंत्र की आहुति के साथ नियमित रूप से यज्ञ करना आरंभ किया। श्रद्धा और विश्वास के साथ मैंने यज्ञ का क्रम बनाए रखा। तत्पश्चात मुझे चमत्कारी परिणाम देखने को मिले। मेरी बेटी के व्यवहार में अभूतपूर्व परिवर्तन दिखने लगे। वो पहले से काफी सकारात्मक हो गई बिना किसी दवा के। उसके बाद से आज तक उसे कभी भी कैंसर संबंधित किसी भी लक्षण की पुनरावृत्ति नहीं हुई। मेरा यही प्रयास रहा कि वो प्रतिदिन यज्ञ में बैठे और प्राणायाम करे। यज्ञ के द्वारा मेरे पूरे घर का वातावरण पूर्णतः परिवर्तित हो गया। यज्ञोपैथी के चमत्कारी गुणों का शब्दों में वर्णन करना संभव नहीं है। यज्ञ के द्वारा असाध्य कैंसर जैसे अन्य रोगों का निवारण संभव है। | | |
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| | यज्ञ द्वारा कमर और घुटने के दर्द से मिली मुक्ति, Herpes Zoster रोग मे भी मिला आराम श्रीमती कांता जड़िया (दिल्ली) मैं वर्षों से नित्य यज्ञ करती हूँ । यज्ञ प्रक्रिया में मंत्रों के साथ हवनकुंड में घी कि आहुती देने के बाद "इदं न मम" बोलते हुए प्रणीता पात्र के जल में घी टपकाते है। मैंने इसी घृत के औषधीय उपयोग से कई लाभ प्राप्त किए है जिसके बारे मैं यहाँ बताना चाहती हूँ। मुझे पिछले चार पाँच साल से कमर दर्द और घुटनों में दर्द की शिकायत रहने लगी। मैं पालथी मार कर बैठने में असुविधा महसूस करने लगी थी। मेरे ससुर जी भी नित्य यज्ञ करते थे तथा गायत्री मंत्र बोलते हुए इस घृतावघ्राणम के जल को वो अपने घुटनों पर लगाते थे। पूछने पर उन्होंने बताया कि यज्ञ के बाद वहीं बैठे बैठे इस जल का उपयोग करने से यह महाऔषधि का काम करता है। अतः मैंने भी इस घृतावघ्राणम जल को कमर तथा घुटनों पर लगाना शुरू कर दिया। अब मुझे कमर के दर्द में भी आराम है और मैं आराम से पालथी लगा कर बैठ सकती हूँ । अभी सितंबर 2020 में मेरी कमर पर हर्पीज (Herpes Zoster) हो गया और फैलते फैलते नाभि के नीचे तक आ गया। मैंने एलोपैथी दवाओं के साथ साथ गायत्री मंत्र और महामृत्युंजय मंत्र बोलते हुए घृतावघ्राणम जल भी लगाया जिससे दर्द में भी आराम मिला तथा रिकवरी भी जल्दी हुई। कहा जाता है कि हर्पीज का दर्द असहनीय होता है। | | |
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| | कमर और घुटने के दर्द मे यज्ञ से पहुँचा लाभ श्रीमती राजेश्वरी जी (कोलकाता) कुछ समय पहले मेरे बाएँ पैर में मोच आ गयी थी जिसके कारण मुझे चलने में बहुत कठिनाई हो रही थी। घुटने से लेकर कमर तक अत्यधिक पीड़ा थी। अगले दिन यज्ञ मे मैंने सामग्री के साथ भीमसेनी कपूर को भी मिलकर होमा तत्पश्चात मैंने कुछ देर प्राणायाम किया, व उसके बाद मैंने घृतावघ्राणम् जल, जो की यज्ञीय ऊर्जा से परिपूर्ण था, उसे अपने पैरों पर लगाया उसे लगाने के कुछ समय बाद ही मुझे अत्यधिक आराम का अनुभव हुआ और थोड़ी देर बाद वह दर्द लगभग पूर्णतः समाप्त हो गया। यह एक अभूतपूर्व अनुभव था। यह सत्य है, यज्ञ न सिर्फ एक आध्यात्मिक उपचार है वरन इसके द्वारा अनेक प्रकार के रोगों की चिकित्सा भी संभव है। | | |
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| | यज्ञ भस्म का असर श्रीमतीअनीता जी (कलकत्ता) यज्ञ की भस्म का प्रयोग पेड़ व पौधों पर करने से अत्यधिक प्रभावशाली परिणाम देखने को मिले ।मेरे घर में दो अमरूद के पेड़ लगे हुए है| एक में बड़े अमरूद आते है और दूसरे में छोटे । परंतु सीजन में फल केवल गिनती के 10 से 15 ही रहते थे। इस वर्ष मैंने एक प्रयोग किया । मैंने नित्य यज्ञ करने के उपरांत यज्ञ कुंड को उन पेड़ों के नीचे रख दिया जिससे उन्हे यज्ञ का औषधीय धूम्र मिला। इसके अतिरिक्त यज्ञ की भस्म को मैंने जल में घोल कर नित्य पेड़ों की जड़ों में डाला, इसका परिणाम यह रहा कि मेरे घर में लगे पेड में अमरूद का साइज इस वर्ष अधिक बड़ा है, फल भी दोगुना रहा और बाकी पौधे भी स्वस्थ बने रहे । दूसरा पेड़ जिसमें छोटे अमरूद आते हैं उसमें तो आपकी बार इतने फल आए हैं कि गिनना मुश्किल है। इसके भी फलों का साइज पहले से बड़ा हुआ है । जामुन के पेड़ में भी भस्म का जल डाला तो इस बार जामुन भी बहुत आए । मैंने किसी भी पौधे के लिए कीटनाशक या खाद का प्रयोग नहीं किया है। | | |
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| | यज्ञ द्वारा कोरोना में सभी स्वस्थ्य कर्मी रहे सुरक्षित अखिल भारतीय आयुर्वेद संस्थान (नई दिल्ली) अखिल भारतीय आयुर्वेद संस्थान, नई दिल्ली की डायरेक्टर मैडम डॉ. तनुजा नेसरी जी के साथ दिल्ली की यज्ञोपैथी टीम की एक मीटिंग जुलाई माह में हुई। उस मीटिंग में डॉ. नेसरी जी ने बताया की आयुर्वेद में यज्ञ चिकित्सा को "देव व्यापश्रय" का एक विशिष्ट अंग माना है और उसे महामारी को रोकने का एक सक्षम उपाय बताया है| अतः उन्होने अप्रैल माह से ही कोरोना के रोगियों की संख्या बढ़ने के बाद संस्थान के परिसर में नित्य यज्ञ करना प्रारंभ कर दिया है। इसके इन्हे अत्यंत सकारात्मक प्रभाव मिले हैं जैसे कि - अप्रैल माह से जुलाई माह तक संस्थान का कोई भी डॉक्टर अथवा कर्मचारी, जो कि नित्य संस्थान में कार्य कर रहे थे, उन्हें कोरोना का संक्रमण नहीं हुआ। जो कोरोना के मरीज भर्ती हो रहे थे, 3 से 5 दिन के अंदर ही उनकी रिपोर्टस नेगेटिव आने लगी थी एवं वे ठीक हो कर घर जा रहे थे। अखिल विश्व आयुर्वेद संस्थान में उस समय तक सैकड़ों कोरोना के मरीज़ पहुँच रहे थे किंतु किसी भी संक्रमित रोगी की मृत्यु नहीं हुई।
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यज्ञोपैथी द्वारा रोगोपचार - 2 |
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निम्न रोगों के यज्ञोपचार के लिये जिन विशेष औषधियों का हवन सामग्री में प्रयोग किया जाना चाहिये वो हैं: 1. शीत ज्वर: पटोल पत्र (नागरमोथा), कुटकी, नीम की छाल, गिलोय, कुड़े की छाल, करंजा, नीम के पुष्प | 2. अपच: तालीशपत्र, तेजपात, पुदीना की जड़, हरड़, अमलतास की छाल, नागकेसर, काला जीरा, सफ़ेद जीरा | 3. वमन: वायबिड़ंग, पीपल, पिपलामूल, ढाक के बीज, निशोथ, नींबू की जड़, आम की गुठली, प्रियंगु I 4. श्वास: धाय के फूल, पोस्त के डोंडे, बबूल का बक्कल, मालकंगनी, बड़ी इलायची I 5. उदर रोग: चव्य, चित्रक, तालीशपत्र, दालचीनी, आलूबुखारा, पीपरि | |
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आगामी यज्ञोपैथी कार्यक्रम |
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1008 गृहे गृहे गायत्री यज्ञ गौतम बुद्ध नगर 30/10/2020 परम पूज्य गुरुदेव एवं वंदनीया माता जी के सूक्ष्म संरक्षण में तथा श्रद्धेय डॉक्टर साहब के गृहे गृहे गायत्री यज्ञ अभियान के अंतर्गत गायत्री चेतना केंद्र नोएडा के मार्गदर्शन में कोरोना संक्रमण निवारण एवं पर्यावरण परिशोधन हेतु गौतम बुद्ध जिले के समस्त गायत्री परिवारों में शरद पूर्णिमा 30 अक्टूबर 2020 शुक्रवार को एक साथ एक समय में प्रातः 09:00 बजे से 11:00 बजे की अवधि में 1008 परिवारों में एक कुंडीय गायत्री यज्ञ आयोजन होने जा रहा है। आपसे अनुरोध है कि आप अपने परिवार एवं अपने परिचय के क्षेत्र के ज्यादा से ज्यादा लोगों को इस विराट गायत्री यज्ञ आयोजन में जोड़ कर पुण्य के भागीदार बनें। प्रत्येक साधक से अनुरोध किया गया है कि वे शरद पूर्णिमा की अवधि तक 240 माला का गायत्री मंत्र जप ( एक लघु अनुष्ठान) तथा 240 गायत्री मंत्र लेखन अपनी-अपनी सुविधानुसार कर लें और उसकी पूर्णाहुति अपने ही घर में शरद पूर्णिमा के दिन निश्चित समय अवधि में करें। आयोजक समस्त गायत्री परिवार गौतम बुद्ध नगर, (दिल्ली - एन. सी. आर.) |
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पुरस्कार एवम उपलब्धियाँ कोट्टायम, केरल में 12 एवं 13 सितंबर में आयोजित अंतराष्ट्रीय कॉन्फ़्रेंस में यज्ञोपैथी टीम का सराहनीय प्रदर्शन |
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विश्व के करीब 20 से अधिक देशों के वैज्ञानिकों, डॉक्टर्स, अकडेमिशियन की उपस्थिति में यज्ञोपैथी टीम के चार पेपर प्रस्तुति के लिए चयनित किए गए व 2 पुरस्कार भी प्राप्त किए । अमेटी विश्वविद्यालय, नोयडा में कार्यरत श्रीमती शीलू सागर ने वैदिक मंत्र एक समग्र स्वास्थ्य प्रबंधन के ऊपर अपनी शोध को प्रस्तुत किया जिसे वहाँ उपस्थित लोगों ने बहुत सराहा और अंत में उस शोध के लिए उन्हे द्वितीय पुरस्कार मिला । इसके अतिरिक्त हमारी टीम की एक दूसरी सदस्य दिव्या शर्मा को भी उनके कार्य के लिए 'विशेष अवार्ड' से पुरस्कृत किया गया । सुश्री दिव्या ने शरीर क्रिया विज्ञान के मानवीय जैव विद्युत की उपलब्धता और सेंसर उपकरण की मदद से इसका कम्प्यूटेशनल विश्लेषण पर प्रस्तुति की । श्री अक्षत ने वैकल्पिक चिकित्सा पद्धतियों के माध्यम से विकिरण और प्रसन्नता का सांख्यिकीय रूप से विश्लेषण करने पर विचार प्रस्तुत किया । डॉ. रोहित रस्तोगी ने प्राचीन वैदिक परंपरा और यज्ञ के तकनीकी पहलुओं को प्रस्तुत किया। इन सभी के प्रस्तुतियों को उपस्थित लोगों ने बहुत सराहा और लोगो द्वारा पूछे गए प्रश्नों का समाधान भी दिया गया ।
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यज्ञोपैथी वेबिनार यज्ञ का मानवीय रोगों एवं प्रदूषण पर प्रभाव विषय पर वेबिनार यू .एस. ए. एवं कनाडा स्थित कुछ विशिष्ट विज्ञ भारतीय परिजनों के शंका निवारण एवं मार्गदर्शन हेतु एक वेबिनार डॉ. ममता सक्सेना द्वारा दिनांक 12/07/2020 को आयोजित किया गया इसमें अनेक परिजनों ने भाग लिया| वेबिनार में यज्ञ के ऊपर देव संस्कृति विश्व विद्यालय के तत्वावधान में डॉ. ममता सक्सेना द्वारा की गई शोध के विषय में एक प्रेजेंटेशन दिया गया जिसमें यज्ञ का प्रभाव मानवीय रोगों के ऊपर तथा वायु प्रदूषण के ऊपर क्या होता है इसके प्रयोगों के निष्कर्षों पर चर्चा की गई| तत्पश्चात परिजनों के अनेक शंकाओं के समाधान दिए गए, सभी परिजन अत्यंत संतुष्ट थे और यज्ञ के ऊपर वैज्ञानिक कार्य करने के लिए प्रोत्साहित दिखे। रिकॉर्डिंग देखने के लिए नीचे विडियो या आगे दिए लिंक पर क्लिक करें । ( रिकॉर्डिंग देखें ) |
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यज्ञोपैथी प्रशिक्षण कार्यक्रम श्री प्रदीप कुमार राव (गायत्री परिवार, दिल्ली - एन. सी. आर.) द्वारा "यज्ञोपैथी : एक समग्र उपचार का वैज्ञानिक पक्ष" पर एक वेबिनार सीरीज का आयोजन किया गया जिसमें डॉ. ममता सक्सेना द्वारा दो लेक्चर दिनांक 09/08/2020 और 16/08/2020 को दिए गए | इन लेक्चर सीरीज में लगभग 100 प्रतिभागियों ने भाग लिया । यज्ञोपैथी : एक समग्र उपचार का वैज्ञानिक पक्ष (एक समग्र उपचार का वैज्ञानिक पक्ष) भाग- 2 |
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प्रशिक्षक - प्रशिक्षण कार्यक्रम देव संस्कृति विश्व विद्यालय के द्वारा लॉकडाउन के दौरान एक 16 घंटे का यज्ञोपैथी का ऑनलाइन प्रशिक्षक - प्रशिक्षण कार्यक्रम चलाया गया जिसका मुख्य संचालन डॉ. विरल पटेल द्वारा किया गया जो कि याज्ञवलक्य अनुसंधान केंद्र में समन्वयक के पद पर कार्यरत हैं । इस कार्यक्रम में विभिन्न विषयों पर डॉ. वंदना श्रीवास्तव, डॉ. अनिल झा, डॉ. विरल पटेल, डॉ. रजनी जोशी आदि द्वारा लेक्चर दिए गए । लेक्चर के विषयवार सूची एवं विडियो लिंक नीचे दिए गए है, रिकॉर्डिंग देखने के लिए लिंक पर क्लिक करें . |
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"अग्निहोत्र के प्रभाव" पर एक अंतर्राष्ट्रीय चर्चा मन्द्सोर विश्वविद्यालय मध्य प्रदेश में 07/07/2020 को हमारे पर्यावरण, कृषि और मानव स्वास्थ्य पर "अग्निहोत्र के प्रभाव" पर एक अंतर्राष्ट्रीय ऑनलाइन चर्चा का आयोजन किया गया, इस चर्चा की रिकॉर्डिंग नीचे दिए लिंक पर उपलब्ध है, इसे देखने के लिए क्लिक करें। |
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यज्ञोपैथी अन्य गतिविधियां |
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जल में जल यज्ञ का अभिनव प्रयोग जगवीर सिंह कादियान (मास्को, रूस) |
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मास्को (रूस) में यज्ञ और योग का अद्भुत संयोग देखने को मिला जब ए.बी.एस. इंटरनेशनल योग एकेडमी के तत्वाधान में विश्व योग दिवस का आयोजन मास्कोवा नदी में एक क्रूज़ में किया गया ।, इस समारोह में गायत्री चेतना केंद्र को विशेष रूप से आमंत्रित किया गया जिसके संयोजक मंडल के सदस्य श्री जगवीर सिंह कादियान, श्रीमती अनीता कादियान, सुश्री ललिता, श्रीमती स्वेतलाना ने भाग लिया । ए.बी.एस. के निदेशक एवं विश्व चैम्पियन, योग प्रशिक्षक श्री सुनील दहिया ने आए हुए सभी योगी आध्यात्मिक अतिथियों का स्वागत किया । सर्वप्रथम यज्ञ का आवाहन करते हुए गायत्री चेतना केंद्र के संयोजक मंडल ने जल में जल यज्ञ किया जिसमें सैकड़ों श्रद्धालुओं ने भाग लिया और कोरोना महामारी से मानवता की रक्षा के लिए आहुतियाँ दी गई । इस महा जल यज्ञ का आयोजन मास्को में पहली बार हुआ है, जिसमें जल के माध्यम से पूरे मास्को शहर की परिक्रमा करते हुए विश्व शांति एवं विकास की प्रार्थनाएँ की गई। इस अवसर पर श्रीमती अनीता कादियान ने परम पूज्य गुरुदेव तपोनिषठ आचार्य श्रीराम शर्मा के जल यज्ञ की संकल्पना का वास्तविक स्वरूप और महत्व बताया। श्री जगवीर सिंह कादियान ने जल में जल यज्ञ के इस महान आयोजन को गुरुदेव की अपार कृपा बताया । क्रूज़ में ही योग दिवस का आयोजन किया गया जिसमें श्री सुनील दहिया के अतिरिक्त सोफिया और अन्य ने भी योग क्रियाओं को प्रमुखता से करते हुए विभिन्न आसनों की जानकारी देते हुए, खान पान और जीवन की जानकारियाँ सांझा की गई । यह कार्यक्रम लगभग सात घंटे चला जिसमें सैकड़ों की संख्या में रूसी और भारतीय लोगों ने भाग लिया । कार्यक्रम के अंत में आयोजकों ने गायत्री चेतना केंद्र का आभार व्यक्त करते हुए सदस्यों को सम्मानित किया । मास्कोवा नदी के क्रूज़ में भारतीय वैदिक संस्कृति और योग का यह भव्य कार्यक्रम सभी के लिए आश्चर्य और आनंद का विषय रहा । |
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अस्पताल के डॉक्टर दिखा रहे हैं यज्ञ में रुचि |
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जवाहरलाल जिला चिकित्सालय , रुद्रपुर, उधमसिंह नगर, में श्रीमती अंशुल टंडन द्वारा सूक्ष्म यज्ञ का प्रस्तुतिकरण किया गया जिसमें चिकित्सालय के सभी डॉक्टरों एवं स्टाफ ने भाग लिया। प्रस्तुतिकरण में यज्ञोपैथी के अनेक लाभों के विषय में बताया गया। प्रस्तुतिकरण के पशचात लगभग 21 चिकित्सालय स्टाफ ने सूक्ष्म यज्ञ औषधीय उपले व सूक्ष्म यज्ञ कुंड लिए। |
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छत्तीसगढ़ में भारतीय डाक विभाग के कर्मचारियों को सूक्ष्म यज्ञ प्रशिक्षण |
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दिनांक 8 अगस्त को विचार क्रांति चलचित्र अभियान केंद्र दुर्ग, छत्तीसगढ़ में भारतीय डाक विभाग के कर्मचारियों का आगमन हुआ । मिशन की गतिविधियों को जानकर वे बहुत ही प्रभावित हुए । उत्साह पूर्वक वे सूक्ष्म यज्ञ का प्रायोगिक प्रशिक्षण लेना चाहते थे । इसलिए 15 मिनट में उन सभी को सूक्ष्म यज्ञ करके दिखाया गया । इसमें सभी को यज्ञोपैथी के भौतिक और आध्यात्मिक लाभ के संबंध में जानकारी दी गई । |
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यज्ञ अभियान पर प्रकाशित समाचार |
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यज्ञ से दी महामारी को मात - पुनः कार्य पर लौटी कोरोना योद्धा डॉ. पूजा बागड़ी, जो कि सी.एच.एल. अपोलो हॉस्पिटल, उज्जैन में अपनी सेवाएं दे रहीं हैं, विपरीत परिस्थितियों में भी मरीजों की सेवा में दिन-रात जुटी रहीं । इस कार्य के दौरान वो स्वयं कोरोना से संक्रमित हो गई, तब उन्होने गायत्री यज्ञ में जड़ी बूटियों का प्रयोग कर स्वयं को ठीक किया | घर वालों के इच्छा के विरुद्ध वे स्वस्थ होकर दोबारा कार्य करने अस्पताल पहुँच गई और तब से निरंतर अपनी सेवाएं दे रहीं हैं । इस बात का विशेष उल्लेख राष्ट्रीय स्तर के न्यूज़ बुलेटिन में किया गया है। वे अब तक 28 मरीजों को स्वस्थ कर चुकी हैं । | | |
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यहाँ कोरोना के मरीजों को दी जा रही गायत्री मंत्र थैरपी, 50% मरीज हुए स्वस्थ | | |
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यज्ञ के औषधीय धूम्र से किया सिंधु नगर को सेनीटाइज़ सिंधु नगर, भावनगर (गुजरात) में एक अभिनव प्रयोग हुआ | यज्ञोपैथी द्वारा कोरोना महामारी से लड़ने का एक अनूठा प्रयोग सिंधु नगर, भावनगर (गुजरात) में किया गया। यहाँ पर एक स्थान पर बड़ी मात्रा में यज्ञ कुंडों में यज्ञ किया गया, उसके उपरांत उन कुंडों को हाथ में लेकर सिंधुनगर में यात्रा निकली गई | प्रयोजन था यज्ञीय धूम्र को पूरे सिंधुनगर में पहुँचाना और उसके द्वारा कोरोना बीमारी के कीटाणु को समाप्त करना इसी तर्ज पर नागपुर शहर में भी बड़े बड़े यज्ञ कुंडों में यज्ञ करके खुले ट्रैक्टर - ट्राली / खुली वैन में रखकर पुलिस लाइन क्षेत्र में यात्रा निकाली गई। इसका नेत्तृत्व श्री बन्दु महसराम ने किया । | | |
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'ऊँ' की ध्वनि से कोरोना मरीजों की स्थिति मे सुधार ! | | |
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आयुर्वेद संस्थान ने भी माना यज्ञ में होमी औषधि देती है लाभ अखिल भारतीय आयुर्वेद संस्थान , सरिता विहार, नई दिल्ली में परिसर में नित्य यज्ञ हो रहा है जिसके कारण वहाँ पर अभी तक कोई भी डॉक्टर अथवा कर्मचारी करोना से संक्रमित नहीं हुआ है । | | |
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यज्ञ अनुसंधान / शोध अवसर याज्ञवलक्य शोध केंद्र, देव संस्कृति विश्व विद्यालय में यज्ञोपैथी पर शोध करने के इच्छुक छात्र / परिजन विस्तृत जानकारी नीचे दिए लिंक पर क्लिक करके प्राप्त करें | लिंक : http://cyr.dsvv.ac.in/research-opportunity/ |
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यज्ञोपैथी अभियान से जुड़े - नित्य यज्ञ करें |
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|| दैनिक यज्ञ- हेतु - संक्षिप्त यज्ञ विधि विधान || दैनिक यज्ञ संक्षिप्त होता है - दैनिक यज्ञ/हवन देवआह्वान संक्षिप्त होता है क्योंकि यह नित्य की दिनचर्या में किया जाना होता है । ताँबे के हवन कुण्ड में अथवा भूमि पर १२ अँगुल चौड़ी १२ अँगुल लम्बी, ३ अँगुल ऊँची, पीली मिट्टी या बालू की वेदी बना लेनी चाहिए। हवन करने वाले उसके आस- पास बैठें। शरीर- शुद्धि, मार्जन, शिखाबन्धन, आचमन, प्राणायाम, न्यास आदि गायत्री मन्त्र से करके कोई ईश्वर प्रार्थना हिन्दी या संस्कृत की करनी चाहिए। वेदी और यज्ञ का जल, अक्षत आदि से पूजन करके गायत्री मन्त्र के साथ हवन आरम्भ कर देना चाहिए। || दैनिक यज्ञ –विधि विधान || यज्ञ हेतु व्यवस्था –सामग्री – एक हवन कुण्ड, औषधीय हवन सामग्री, गाय का घी, समिधा(गाय के गोबर की समिधा) , रोली (तिलक), चावल (अक्षत जो टूटे न हों), एक ताम्बे का कलश/ एककटोरी/ गिलास में जल व चम्मच, पुष्प (व्यवस्था न हों तो अक्षत को हल्दी से पीला कर के रख लें) व प्रसाद में (मिश्री, गुड़ या जो भी सम्भव हो)| यज्ञ विधि (यज्ञ में समय/अवधि : 2० मिनट) - सुबह नहा धो लें और मन में भक्तिभाव का संचार करें,यज्ञ भगवान पर दृढ विश्वास और अटूट श्रद्धा रखें। भगवान श्रद्धा और विश्वास में ही निवास करते हैं।
- पवित्रीकरण – सभी सदस्य अपने हाथ में जल लें, एक व्यक्ति निम्नलिखित पढ़कर बोलें बाकी सब दोहराएँ
“ॐ अपवित्रः पवित्रो वा सर्वावस्थांगतोपि वा य: स्मरेत पुण्डरीकाक्षो स वाह्याभ्यन्तरः शुचि | ॐ पुनातु पुण्डरीकाक्ष: पुनातु पुण्डरीकाक्ष: पुनातु ||” पवित्रता की भावना करते हुए सभी अपने शरीर पर छिड़क लें | - तिलक – रोली को गीला कर लें और अनामिका अंगुली में लगा कर रख लें
“ॐ चन्दनस्य महत्पुण्यं पवित्रम पाप नाशनम आपदां हारते नित्यं लक्ष्मी तिष्ठति सर्वदा | हमारा मस्तिष्क शांत रहे, इसमें विवेक सदैव बना रहे|” यह भाव रखते हुए एक दुसरे के मष्तिष्क पर स्नेह एवं सम्मान के साथ रोली/चन्दन लगायें | - दीप प्रज्ज्वलन–गायत्री मंत्र बोलते हुए दीपक को जला लें/प्रज्ज्वलित कर लें|
- देव आवाहन – सभी हाथ जोड़कर भावना पूर्वक सभी देव शक्तियों का आवाहन करे व सर झुककर प्रणाम करे|
गुरु- परमात्मा की दिव्य चेतना का वह अंश जो साधकों का मार्गदर्शन और सहयोग करने के लिए व्यक्त होता है। ॐ गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुः, गुरुरेव महेश्वरः। गुरुरेव परब्रह्म, तस्मै श्री गुरवे नमः ॥ १॥ ॐ श्री गुरवे नमः। आवाहयामि, स्थापयामि, ध्यायामि। गायत्री- वेदमाता, देवमाता, विश्वमाता- सद्ज्ञान, सद्भाव की अधिष्ठात्री सृष्टि की आदिकारण मातेश्वरी। ॐ आयातु वरदे देवि! त्र्यक्षरे ब्रह्मवादिनि। गायत्रिच्छन्दसां मातः, ब्रह्म योनिर्नमस्तुते ॥ ४॥ - सं०प्र० ॐ श्री गायत्र्यै नमः। आवाहयामि, स्थापयामि, ध्यायामि। ततो नमस्कारं करोमि। देवप्रतिमा को तिलक चन्दन करके पुष्प और अक्षत समर्पित करें - यज्ञ प्रज्ज्वलन–गायत्री मंत्र बोलते हुएअग्नि प्रज्वलित करें /जला लें I कोई छोटा सा भजन गा लें |
- 7 आज्याहुति घी से (स्रुवा पात्र के सहारे, स्वाहा के साथ आहुति समर्पित करें, लौटाते समय घी की एक बूँद जल से भरे प्रणीता पात्र में टपकायें। )
- ॐ प्रजापतये स्वाहा। इदं प्रजापतये इदं न मम॥
- ॐ इन्द्राय स्वाहा। इदं इन्द्राय इदं न मम॥
- ॐ अग्नये स्वाहा। इदं अग्नये इदं न मम॥
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4. ॐ सोमाय स्वाहा। इदं सोमाय इदं न मम॥ 5. ॐ भूः स्वाहा। इदं अग्नये इदं न मम॥ 6. ॐ भुवः स्वाहा। इदं वायवे इदं न मम॥ 7. ॐ स्वः स्वाहा। इदं सूर्याय इदं न मम॥ 24 गायत्री मंत्र से भेषज गायत्री मंत्र -ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो योनः प्रचोदयात् स्वाहा| इदं गायत्र्यै इदं न मम्। (मनोविकारो के शमन हेतु और सद्बुद्धि और मानसिक शांति के लिए) 3 महामृत्युंजय मंत्र से महामृत्युन्जय मन्त्र – ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात् स्वाहा | इदं महामृत्युंजयायै इदं न मम्। ॥ स्विष्टकृत्होमः॥ यह प्रायश्चित्त आहुति भी कहलाती है।। स्विष्टकृत् आहुति अपने स्थान पर बैठे हुए करें। ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो योनः प्रचोदयात् स्वाहा । इदं अग्नये स्विष्टकृते इदं न मम॥ || देवदक्षिणा- पूर्णाहुतिः|| घृत होमने वाले स्रुचि में सुपारी अथवा सूखानारियल का गोला तथा घृत लें, स्वाहा के साथ आहुति दें। (नारियल में चाकू से थोड़ा ऊपर से छेद कर लें) ॐ पूर्णमदः पूर्णमिदं, पूर्णात् पूर्णमुदच्यते। पूर्णस्य पूर्णमादाय, पूर्णमेवावशिष्यते॥ ॐ सर्वं वै पूर्ण स्वाहा॥ || वसोर्धारा || घृत की अविच्छिन्न धारा टपकाई जाती है और अधिक घृत होमा जाता है। ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो योनः प्रचोदयात् स्वाहा ॥ घृतावघ्राणम्॥ यज्ञ भगवान् का प्रसाद घृत अवघ्राण से प्राप्त होता है। ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो योनः प्रचोदयात् ॥ भस्मधारणम्॥ भस्म को मस्तक, कण्ठ, भुजा तथा हृदय पर भी लगाते हैं, मस्तक अर्थात् ज्ञान, कण्ठ अर्थात् वचन, भुजा अर्थात् कर्म। शांति पाठ : लोटे के जल को सभी के उपर छिडकें औरहाथ जोड़कर सभी निम्न प्रार्थना दोहराएँ ॐ द्यौ शांति अंतरिक्ष: Ω शांति: पृथवी शांति राप: शांति रौषधिय: शांति: | वनस्पतय: शान्तिर्विश्वेदेवा: शांति ब्रह्मा शांति: सर्व Ω शांति: शांति रेव शांति: सामा: शान्तिरेधि | ॐ शान्तिः, शान्तिः, शान्तिः। सर्वारिष्ट- सुशान्तिर्भवतु। || शुभकामना ||: हाथ फैला कर सभी के लिए शुभ कामना करें ॐ स्वस्ति प्रजाभ्य: परिपालयंताम न्यायेन मार्गें मही महिश्वर: गौ ब्राह्मणेभ्य: शुभमस्तुनित्यं लोका: समस्त: सुखिनो भवन्तु| सर्वे भवन्तु सुखिन: सर्वे सन्तु निरामया सर्वे भद्राणी पश्यन्तु मां कश्चिद् दुःख माप्नुयात|| भावनात्मक देवशक्तियों को प्रणाम – अभिवादन करते हुए विदाई दे दें | सभी को प्रसाद वितरित कर दें | विधि सीखने के लिए विडियो लिंक पर क्लिक करें : https://www.youtube.com/watch?v=WdmgwVSq3GI&t=97s |
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यज्ञ ज्ञान-विज्ञान प्रश्नोत्तरी |
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प्रश्न : नमकीन पदार्थ यज्ञ में क्यों नहीं डाले जाते हैं ? उत्तर : नमक का केमिकल फार्मूला एनएसीएल NACL, अर्थात सोडियम क्लोराईड है और जब अग्नि में तापमान २५० डिग्री सेंटीग्रेड से ऊपर होता है तो सोडियम टूट कर के ऑक्साइड बनाता है और क्लोरीन टूट कर के वातावरण में क्लोरीन गैस रिलीज होती है, जो कि एक विषाक्त गैस है । यदि नमक यज्ञ में डाला जाएगा या नमकीन वस्तुओं से यज्ञ किया जाएगा तो जहरीली गैस के साथ-साथ स्किन पर जलन भी होगी जो कि स्वास्थ्य के लिये हानिकारक हो सकती है। इसीलिए नमकीन वस्तु या नमक से यज्ञ मे आहुति देने की मनाही है। प्रश्न : यज्ञ से चिकित्सा कैसे होती है? उत्तर : रोग होने पर शरीर में औषधि पहुँचानी होती है। दवा, गोली, चूर्ण, इंजेक्शन आदि अनेक माध्यम से यह कार्य होता है। मुख से दवा को शरीर में भेजने से उसका प्रभाव देर से होता है जबकि इंजेक्शन से सीधा रक्त में पहुंच जाती है और सारे शरीर में फैल जाती है । इससे भी अधिक प्रभावी तरीका है सीधे सांस द्वारा शरीर में जाकर असर करना। गंभीर रोगी को ऑक्सीजन की नली सीधे नाक में लगा देते हैं ।यज्ञ से भी यही होता है। हवन द्वारा औषधियों को वायु रूप बना दिया जाता है जिससे उनका प्रभाव कई गुना बढ़ जाता है और यह औषधियां जितना कार्य करती हैं उतना खाने पीने से नहीं होता। अगर किसी का शरीर दुर्बल हो, हाजमा कमजोर हो तो पौष्टिक पदार्थों को हवन द्वारा वायुभूत करके नाक और रोमछिद्र द्वारा शरीर में प्रवेश कराया जाए तो वे अभीष्ट फल प्रदान करते हैं । पुराने घाव भी यज्ञीय उर्जा से जल्दी सूख जाते हैं क्योंकि रोगाणुओं का नाश होने से मवाद बनना बंद हो जाता है। शरीर के भीतर या बाहर जहां भी छोटे या बड़े जख्मों के कारण पायरिया, तपेदिक, दमा, नासूर, कैंसर रोग होते हैं उन्हें सुखाने में हवन की गैस बहुत ही लाभदायक होती है। यज्ञ द्वारा पौष्टिक पदार्थों को श्वास द्वारा अंदर प्रविष्ट कराने से वह पाचन तंत्र में ना जाकर सीधे रुधिर संचार माध्यम से पूरे शरीर में हर अंग-प्रत्यंग में पहुँच जाते हैं और दुर्बल अंगों को बलिष्ठ बनाते हैं। शारीरिक ही नहीं मानसिक रोगों के निवारण की भी यज्ञ धूम्र में अपूर्व क्षमता है । काम, क्रोध, मोह, ईर्ष्या, द्वेष, कायरता, कामुकता, आलस्य, प्रमाद, सनक, उदय, आवेश, संदेह, अविश्वास, अहंकार, निराशा, विस्मृति अनेक विकारों की चिकित्सा हवन से ही संभव है। एलोपैथिक इलाज से ये ठीक नहीं हो पाते हैं। ऐसे लोगों के लिए यज्ञ ही एकमात्र विश्वसनीय पद्धति है। इसके अतिरिक्त यज्ञ द्वारा अंत:करण तक पहुँच कर जन्मों से, कार्मिक कारणों से जो रोग जड़ जमाये बैठे हैं, उन्हें भी दूर करना सम्भव होता है. इस प्रकार हम देखते हैं कि यज्ञ एक समग्र उपचार पद्धति है और इसमे बलवर्धक और रोग निवारण की अद्भुत शक्ति है। |
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मंत्र यज्ञ में मंत्र विज्ञान की अति विशिष्ट भूमिका है, यज्ञ विज्ञान की समग्रता शब्द ब्रह्म से यज्ञ प्रक्रिया के समन्वय पर निर्भर है । वेदों मे वर्णित मंत्र - सूक्त जब विशिष्ट क्रम मे गाएँ जाते है तो वांछित परिणाम उत्पन्न करते है । इस संस्करण से आगे यज्ञोपैथी में प्रयुक्त होने वाले विशेष मंत्रो की एक सीरीज प्रारंभ की जा रही है । कोरोना निवारण आहुति के लिए मंत्र मंत्र नीचे दिए गए है एवं उनके उच्चारण सीखने के लिए नीचे दिए लिंक पर क्लिक करें विश्वव्यापी कोरोनावायरस से उत्पन्न रोगों /महामारी के निवारण हेतु कृमिनाशक मंत्र| वर्तमान में विश्वव्यापी कोरोना वायरस नामक विषाणुओं के विनाश हेतु यह आहुति आदित्य को समर्पित करें। 1. कृमिनाशक मंत्र ॐ उद्यन्नादित्य: क्रिमीन् हन्तु निम्रोचन् हन्तु रश्मिभि: ये अन्त: क्रिमयो गवि । स्वाहा इदम् आदित्यगणेभ्य: इदं न मम। (अथर्व-२/३२/१) 2. रोग निवारण मंत्र कोरोनाजनित रोग- निवारणर्थम् आहुति: 'कोरोना वायरस' से उत्पन्न रोगों के निवारणार्थ ये आहुति सूर्य देव को समर्पित करें। ॐ शीर्षक्तं शीर्षामयं कर्णसूलं विलोहितम् । सर्व शीर्षण्यं ते रोगं बहिर्निमंत्रयामहे।। स्वाहा इदम् सूर्याय, इदं न मम।।(अथर्व-९/८/१३/१) 3. सुरक्षा मंत्र आपद्-रक्षार्थम् आहुति: यह आहुति आपन्न संकट से सुरक्षा के लिए वैश्वानर देव को समर्पित करें। मंत्र में उल्लिखित स्वाहा शब्द के साथ आहुति समर्पित न करके, द्वितीय स्वाहा पर स्वयं स्वाहा बोलते हुए आहुति समर्पित करें। ॐ अग्ने वैश्वानर विश्वैर्मा देवै: पाहि स्वाहा। स्वाहा इदम् वैश्वानराय इदं न मम। (अथर्व - २/१६) इन मंत्रो का अभ्यास करने के लिए वीडियो लिंक नीचे वीडियो गैलरी मे उपलब्ध है |
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